बचत, निवेश और टैक्स को लेकर हमारी इस खास सीरीज में इस बार हम बात कर रहे हैं एनपीएस यानि न्यू पेंशन स्कीम की। एनपीए एक पेंशन प्रोडक्ट है और 2004 में सरकारी कर्मचारियों के लिए इसे शुरू किया गया। लेकिन, बाद में 2009 में आम लोगों के लिए इसे खोल दिया गया। 2011 में कॉरपोरेट्स कर्मचारियों के लिए इसमें निवेश की मंजूरी मिली।








18-60 साल तक उम्र वाला कोई भी शख्स इसमें निवेश कर सकता है। एनपीएस, परंपरागत पेंशन स्कीम्स से अलग है। इस पेंशन फंड के निवेशकों का पैसा शेयर और बॉन्ड मार्केट में लगाया जाता है। मुनाफा बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर होता है। एनपीएस में लॉन्ग टर्म निवेश फायदेमंद होता है। एनपीएस में नियमित निवेश से अच्छा मुनाफा होता है।




एनपीएस में दो तरह के अकाउंट होते हैं, टियर – 1 अकाउंट और टियर – 2 अकाउंट। एनपीएस के लिए टियर – 1 अकाउंट अनिवार्य है, जबकि टियर – 2 अकाउंट वैकल्पिक है। टियर – 1 अकाउंट में टैक्स बेनिफिट मिलता है। टियर – 2 अकाउंट के लिए टियर – 1 अकाउंट होना जरूरी है। टियर – 1 अकाउंट में कम से कम 500 रुपये प्रति महीने निवेश करना अनिवार्य है। इस तरह, टियर – 1 अकाउंट में 6000 रुपये सालाना निवेश करना जरूरी है।

एनपीएस में निवेश बीच में रोकने पर अकाउंट फ्रीज हो सकता है और अकाउंट दोबारा ओपन करवाने पर हर साल के हिसाब से 100 रुपये पेनाल्टी देनी पड़ती है। टियर – 2 अकाउंट में टैक्स बेनिफिट नहीं मिलता, लेकिन टियर-2 अकाउंट से कभी भी पैसा निकालना संभव है। टियर-2 म्युचुअल फंड की तरह काम करता है और टियर-2 में चार्जेस म्युचुअल फंड्स से कम हैं।

कॉरपोरेट कर्मचारी निजी तौर पर एनपीएस में निवेश कर सकते हैं। कंपनियां भी अपने कर्मचारियों के नाम पर निवेश कर सकती हैं। कंपनियों को उनके कॉन्ट्रिब्यूशन पर टैक्स में छूट मिलेगी। ईपीएफ के साथ-साथ एनपीएस में निवेश किया जा सकता है। एनपीएस में निवेश की उम्र 18 से 60 साल है। एनआरआई भी एनपीएस में निवेश कर सकते हैं।




एनपीएस में पीओपी या सर्विस प्रोवाइडर्स की मदद से निवेश संभव है। बैंक और चुनिंदा फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस सर्विस प्रोवाइडर होते हैं। एनएसडीएल की साइट पर सर्विस प्रोवाइडर्स की लिस्ट मौजूद है। एनपीएस का फॉर्म एनएसडीएल की साइट से डाउनलोड कर सकते हैं। केवाईसी फॉर्म के साथ डॉक्यूमेंट्स जमा करने होंगे और परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (पीआरएएन) जारी किया जाएगा। पीआरएएन मिलने के बाद निवेश शुरू किया जा सकता है। ई-एनपीएस भी मुमकिन है और कारोबारी भी एनपीएस में निवेश कर सकते हैं।

एनपीएस में निवेशक के पास 2 विकल्प होते हैं एक्टिव और ऑटो। एक्टिव निवेशक को एसेट क्लास खुद चुनने का हक होता है और एक्टिव निवेशक को 3 तरह के एसेट क्लास दिए जाते हैं। पहला एसेट क्लास ईई क्लास होता है और ईई में पैसा इक्विटी में डाला जाता है। ईई क्लास में 50 पैसे इक्विटी में जाता है। एक्टिव ऑप्शन में निवेश तय योजना के मुताबिक होता है।

दूसरा एसेट क्लास होता है सी, और एसेट क्लास सी में कॉरपोरेट बॉन्ड्स में निवेश किया जाता है। तीसरा एसेट क्लास होता है जी, और जी एसेट क्लास में केंद्र और राज्य सरकार के बॉन्ड और सिक्योरिटीज में निवेश होता है। सी और जी एसेट क्लास में निवेश की सीमा तय नहीं है।

वहीं ऑटो ऑप्शन में फंड मैनेजर निवेशक की उम्र के मुताबिक एसेट क्लास का चुनाव करते हैं। 18-35 साल के निवेशक का 50 फीसदी इक्विटी, 30 फीसदी कॉरपोरेट बॉन्ड्स और 20 फीसदी सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है। 36 साल के बाद हर साल 2 फीसदी इक्विटी निवेश कम हो जाता है। 55 साल तक पहुंचने पर इक्विटी केवल 10 फीसदी रह जाएगा। ऑटो ऑप्शन में रिटायरमेंट तक इक्विटी में निवेश कम हो जाता है।

एनपीएस में टैक्स बेनिफिट 2 तरीके से मिलते हैं। बेसिक सैलरी और डीए के 10 फीसदी एनपीए निवेश पर टैक्स छूट मिलती है। सेक्शन 80 सीसीडी-1 के तहत डेढ़ लाख तक छूट का फायदा उठाया जा सकता है। सेक्शन 80 सीसीडी-1(बी) के तहत 50000 रुपये की अतिरिक्त छूट मिलती है। कॉरपोरेट्स को भी अपने कर्मचारियों के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन पर 80सीसीडी के तहत टैक्स बैनेफिट मिलता है। जागरूक निवेशकों के लिए एनपीएस से ज्यादा बेहतर विकल्प मौजूद हैं। एनपीएस के मुकाबले म्युचुअल फंड्स और इक्विटी फंड्स में एसआईपी में ज्यादा मुनाफा मुमकिन है।